भुचरमोरी युद्ध नवानगर स्टेट | Bhuchar mori yudh nawanagar state - Rajput History

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भुचरमोरी युद्ध नवानगर स्टेट | Bhuchar mori yudh nawanagar state

"सौराष्ट्र का पानीपत" के नाम से प्रसिद्ध भुचरमोरी युद्ध। दिल्ली से अज़ीज़ कोकाह नवानगर की जुकाने यवनो की भयंकर सेना लेके आ गया था,क्योंकि नवानगर के जाम सताजी ने अमदावाद के सूबे को आश्रय दिया था। पर भुचर मोरी के मेद्दान मे हुई खूंखार लड़ाई मे कुंवर अजाजी ने अपना साहस दिखा के इतिहास मे अपना नाम अमर कर दिया।
सौराष्ट्र की सबसे बड़ी लड़ाई जहा हुई वो भुचर मोरी का ऐतिहासिक मैदान मे खडी मुर्तिया आज भी सहीदो की याद दिलाती है।
भारत वर्ष एक ऐसा देश हे जिसमे मान मर्यादा शरणागति संस्कार और सभी लक्षण एक साथ दीखते हे।
राजपूतो ने इस भूमि को अपने रक्त से सींचा हे। अपने धर्म और प्रजा के हित के लिए बलिदान दिए हे।
आज सौराष्ट्र प्रांत के एक ऐसे ही वीर की बात हे जिसने शरण में आये हुए अहमदावाद के सुबा को बचाने के लिए अपने प्राण की आहुति दी।
नवानगर जो आज जामनगर कहलाता हे वहा की यह बात हे।
अहमदावाद मुस्लमान रजा ओ के हाथ में चला गया था। वहां पर दिल्ली की और से सुबा राज चला रहा था। अकबर का दुधभाई अज़ीज़ कोकाह अहमदाबाद की सत्ता पर आरूढ़ होने आया था। सूबे को मारकर वह गद्दी पर बेठना चाहता था। पर अहमदाबाद का सूबा भाग निकला, नवानगर के जाम के पास शरण माँगा।
नवानगर के राजवी जाम छत्रसालजी लोकबोलि में वे जाम सताजी के नामसे प्रख्यात थे।
जाम सताजी ने उसे शरण में लिया। अज़िज़ कोकाह ने जाम से उसे सपने को कहा पर शरणागत को सौपना राजपूती धर्म और संस्कार से खिलाफ हे। अतः उन्होंने सूबे को न सपने का निर्णय कर युद्ध की पूर्ण तैयारी की। दिल्ली की फौज अज़ीज़ कोकाह के नेतृत्व में सौराष्ट्र पर कब्ज़ा करने हेतु आ खड़ी हुई। इतनी बड़ी सेना से अपने राज्य को बचने के लिए जाम सताजी ने ध्रोल के पास “भूचर मोरी” के मैदान में युद्ध करने का निर्णय लिया।
जाम सताजी ने मित्रो को युद्ध में आने का न्योता दिया।
जूनागढ़ से बाबी की सेना आई, खरेडी-वीरपुर से लोमो खुमाण अपनी सेना समेत आया, भुज राव गोडजी ने अपनी सेना भेजी, मेहरामनजी आये।
दिल्ली की फौज की बरोबरि में जाम संताजी ने अपनी फौज इकट्ठी की। अज़ीज़ कोकाह ने एक बार फिर युद्ध के बदले सूबे को सोपने का कहा पर जाम सताजी अडग राजपूती पर बने रहे।
युद्ध शुरू हुआ, चारोंओर मारकाट होने लगी, राजपूतो के शिर गिरे और धड़ रणमेदान में हाहाकार मचाने लगे, मुसलमान सेना में भंग पड़ा, राजपूत योद्धा गाजरमुली की तरह दुश्मनो को काटने लगे। हर हर महादेव की गूंज रणमेदान में तीव्र होने लगी, आभामंडल में गिद्ध वगेरह पंछी चक्कर काटने लगे, शूरवीरो के रक्त से रणजोगणी अपने खप्पर भरने लगी, महादेव अपनी रुण्डमाला के लिए मस्तक लेने लगे।
पर राजपूतो का समय बुरा चल रहा था। अज़ीज़ कोकाह जाम सताजी से समजोता करने ही वाला था यह बात लोमा खुमाण और बाबी को पता चली तब उन्होंने सोचा की अगर जाम जित गए तो अपने राज्य संकट में पड जायेंगे, इस लिए उन दोनों ने अज़ीज़ को सन्देशा भिजवाया की हम तुम्हारे साथ हे।
युद्ध का अंत निश्चित था। जाम सताजी जितने ही वाले थे की लोमो खुमान और जूनागढ़ बाबी ने अपनी सेना अज़ीज़ के साथ मिला दी, और इस तरफ जाम की सेना कम हो गयी, जाम की विजय पराजय में बदलने लगी।
मंत्री ने जाम को अपने राजपरिवार की रक्षा करने हेतु नवानगर वापस भेजा, यह बात जाम सताजी के पुत्र कुँवर अजाजी को पता चली तब उनका विवाह हो रहा था। लग्न के फेरे हो रहे थे। फेरे को बिच में ही छोड़ कुँवर अजाजी और लग्न में सम्मिलित 500 मेहमानो के साथ रणमैदान में आये।
और रनमेदान में घमासान मचा दिया। अपने राजकुँवर को वीरता से लड़ते देख राजपूतो में हर्ष और वीरता का संचार हुआ,
सामान्य से सामान्य सैनिक भी ज्यादा से ज्यादा दुश्मनो को काटने लगे।
कुँवर अजाजी ने हाथी पर आरूढ़ अज़ीज़ को देखा, देखते ही अपने अश्व को कूदाकर हाथी के दन्त पर अश्व ने अपने पैर टिकाये और अजाजी ने अपने भाले से प्रहार किया अज़ीज़ कोठी में छिप गया और बाख गया, लेकिन उसके अंगरक्षकों ने अजाजी पर वार किया, अजाजी के देह में एक साथ कई भाले के वार से वे गिरे और वीरगति को प्राप्त हुए।
गोपाल बारोट ने अजाजी से अभी विवाह पूर्ण नही हुआ था उस राजपूतानी सुरजकुवरबा को अजाजी के वीरगति का समाचार दिया। सुरजकुवरबा को सत चड़ा, जय अम्बे जय आशापुरा का घोष किया, रथ में सवार होकर रणमैदान में आये। मुस्लिमो ने उनका रथ रोकने का प्रयास किया। पर ध्रोल के जाडेजा भायात ने आकर मुस्लिमो को समजाया की यह रिवाज हे। कुटुम्बी अनबन की वजह से ध्रोल भायातो ने युद्ध में हिस्सा नही लिया था। पर जब सुना की रानी का रथ रोका तब वे आपसी भेद भुलाकर मुस्लिमो को समजाने आये। और रानी सुरजकुवरबा अजाजी का मस्तक अपनी गोद में रखकर सती हुये।
इस तरह भूचर मोरी का युद्ध सौराष्ट्र का पानीपत कहलाया, गुजरात के इतिहास बड़े बड़े युद्ध बहोत हुए हे लेकिन यह युद्ध सबसे अंतिम बड़ा युद्ध प्रख्यात हुआ।
जाम सताजी ने एक शरणागत को आश्रय देकर राजपूती धर्म को बचाया और दिल्ली जितने बड़े राज्य से दुश्मनी की, कुँवर अजाजी ने छोटी उम्र में ही बड़े बड़े राजपूतो जितना नाम प्राप्त कर वीरगति स्वीकारी, सुरजकुवरबा ने अजाजी की चिता में सती होकर राजपूतानी यो की फर्ज बजाई, ध्रोल के जाडेजाओ ने आपसी फुट भुलाकर सुरजकुवरबा की मुस्लिमो से रक्षा की।
इतने लक्षण सिर्फ राजपूतो में ही देखने मिलते हे।
(जाम श्री सताजी जाडेजा)
Source:- internet
www.raajputhistory.blogspot.in
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